धूप

दिन की धूप कभी इतनी उबाऊ नहीं थी,
जितनी आज लग रही है,
धूप भी चुपचाप मेरे कमरे तक आयी थी सुबह,
और धीरे-धीरे वापिस जा रही थी,
कभी-कभार आपस में हम खूब बतियाते थे,
परिंदों के किस्से, पहाड़ों के जुमले और नदियों की कहानी,
लेकिन आज उसके पास भी कहने के लिये कुछ नहीं है,
शायद उसका भी कोई अपना उससे बिछड़ गया है,
रूठ गया है,
धूप भी  तकलीफ में हैं,
इसलिए तो आज चुभ रही है...

Labels: