मंज़र
कहते हैं आँखों देखा भी यकीन के काबिल नहीं होता,
ये कहकर खुदको तसल्ली देना ठीक है...
पर ज़रूरत क्या है देखने की,
जब देखना ही तकलीफ देने लगे...
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