स्याह रात

इस स्याह रात के पन्नों में,
उजला कुछ भी नहीं दिखता,
बस दूर-दूर तक मैं ही मैं,
फिर खामोशी ही खामोशी...

आवाज़ भी मैंने तुझको,
मुझे मेरी गूँज सुनायी दी,
बस दूर-दूर तक मैं ही मैं,
फिर खामोशी ही खामोशी...

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