बिसात

खेल लिया!
खुश हो गए!
मन भर गया!
चलो अब मेरी बारी,
मैं खुदा तो नहीं हूँ,
पर मुझमे इतनी ताक़त है,
कि पल में बना सकता हूँ,
तुम्हें खिलौना!
पर मैंने कहा ना,
मैं खुदा तो बिलकुल नहीं हूँ,
न पत्थर पे तराशा हुआ,
न चादर में ढका हुआ,
न तज़्मीं में गुथा हुआ,
न पन्नों में छपा हुआ,
मैं सांस लेता हूँ,
इसी ज़मीं पर,
जहाँ ज़िन्दगी में,
खुशी की अहमियत,
जानता हूँ मैं भी,
वर्ना,
तुम्हारी ज़िन्दगी होती रंगमंच,
और कहानी होती मेरी लिखी,
पात्र सारे कल्पना से परे,
लेकिन हकीकत से जुड़े,
घटनाएं ऐसी जो दहलातीं कभी दिल,
तो कभी कर देती दिमाग खराब,
पर अभी मेरा मन नहीं है,
खुदको बहलाने का,
जाओ!
छोड़ दिया!
अब खेलो खुदके साथ!

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