ख्याली दुनिया

जब मैं सोने जाता हूँ अपने अँधेरे कमरे में,
मोबाइल में रेड Key दबाकर देखता हूँ वक्त,
और उससे होने वाली मद्धम रोशनी में,
कुछ ख्याल से चले आते हैं बेवक्त,
जो ठीक से नज़र भी नहीं आते,
और नींद के झोंके छिटककर गिर जाते हैं दूर,
फिर सोचता हूँ कि सुबह उठा लूँगा मैं उनको,
पर तब तक वो गायब हो जाते हैं,
ऐसे, जैसे थे ही नहीं कभी,
या कोई ख्यालों का चोर उठा ले गया उन्हें,
और बेच दिया हो किसी ऐसे बाज़ार में,
जहाँ से कोई मालगाड़ी उन्हें भरकर,
निकल पड़ती है किसी ऐसी दुनिया में,
जहाँ हर ख्याल हकी़कत हो जाता है,
जे.के.रॉलिंग के जादुई उपन्यास की तरह,
इसी वजह से पिछले कई दिनों के ख्यालों को,
सहेज नहीं पाया मैं अपनी डायरी में,
अगर मेरा कोई ख्याल तुम्हें दिखाई दे,
तो उसे कान से पकड़कर रख लेना अपने पास,
मैं लौटते हुए, उसे अपने घर लेता आऊंगा!

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