चाय और तुम

चाय की प्याली की तपती सतह,
उससे उठती गर्म सी भाप,
होठों से लगते ही,
जुबां को मीठा करने की उसकी अदा,
और,
गले को अंदर से छूती,
उसकी तासीर,
ये चाय मुझे अक्सर,
तुम्हारी याद दिला जाती है...

Labels: