आसमान के आँगन में,
बादल बैठक तो जमाते हैं,
उनके कहकहों में,
कुछ बूँदें छिटककर,
नीचे भी आती हैं,
और ज़मीदोज़ हो जाती हैं,
महीनों से प्यासी धरती को,
इंतज़ार है,
कि कब,
बादल ठहाके मारकर हँसें,
और बूंदों की झड़ी लग जाए,
बारिश की ख्वाहिश में,
आधा सावन सूखा बीत गया,
और आधा,
बीतने को बाकी है...
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