मील का पत्थर

तुम्हें जब देखता हूँ,
तो लगता है ये शहर,
नगर और महानगर के बीच,
कहीं अटक गया है!

लोग अपने-अपने घरों से,
निकल तो गए हैं,
लेकिन रुके पड़े हैं कहीं,
शहर के रस्ते में,

छोटे-छोटे कपड़ें पहनें,
बौनी-बैनी सोच लिए,
क्या ये शहरी दिखने वाले लोग,
पहुँच पायेंगे बड़े शहर?
और पहुँच भी गए तो,
क्या वाकई में बड़े बन पायेंगे?


तुम्हें जब देखता हूँ,
तो लगता है ये शहर,
नगर और महानगर के बीच,
कहीं अटक गया है!


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