वो आख़िरी ही ख़त था उसका
जिसमें पहली मुलाक़ात का ज़िक्र था
ज़िक्र क्या था...ब्यौरा सा ही दिया था उसने
कि किस तरह वो मुझपे लट्टू हुई थी
फिर कैसे गश्त से उसको आये थे
कि कॉफ़ी हाउस की टेबल पर पहली दफ़ा
उसके हाथ कंपकपाये थे
छुरी-काँटा तो छुआ भी न था उसने उस दिन
कटलेट हाथ से ही खाया था
वो बड़ा अजीब था उसके लिए...
वैसे उस दिन ज़्यादातर जो कुछ हुआ
अजीब ही था
क्योंकि वादा चाय पे मिलने का था
और उसने ऑर्डर कोल्डड्रिंक किया था
जैसे कोल्डड्रिंक की उस बोतल के
कार्बोनेटेड वॉटर में
C O 2 के बुलबुले पैदा हो रहे थे
मुझे देखकर उसे भी
घबराहट और मोहब्बत की
मिक्स फ़ीलिंग आ रही थी
वो लम्हा उसके लिए बेहद मुश्किल सा था
जब न मैंने कुछ कहा
न वो कुछ कह पायी थी
बिल देने की भी उसे
बहुत जल्दी थी
अपने आख़िरी ख़त में
इस वाक़िये का ज़िक्र करते हुए
इक शे'र भी लिखा था उसने
अफ़सोस वो शे'र मुझे याद नहीं है,
क्योंकि वो आख़िरी ख़त मेरे पास नहीं है
उसके जाने के बाद
एक-एक करके मैंने जो खोया
उसमें वो आख़िरी ख़त भी था उसका
जिसमें पहली मुलाक़ात का ज़िक्र था
ज़िक्र क्या था...ब्यौरा सा ही दिया था उसने.
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