बूमरैंग

(पहली किश्त)

पहली बार जब वो उस लड़की से मिला था तो उसके दिमाग में नारा गूँज रहा था "अभी तो ये अँगड़ाई है, आगे और लड़ाई है"। उस दिन दोनों एक-दूसरे के सामने आये भी थे लेकिन उससे पहले कभी एक-दूसरे से मिले नहीं थे। वैसे मिले तो उस दिन भी नहीं थे जब उसने काग़ज़ आगे कर दिया और वो उसे एप्लीकेशन की शक्ल देकर स्टूडेंट्स की माँगे लिखती गयी। उस वक़्त वो मानवाधिकार कार्यकर्ता के तौर पर काम कर रहा था। उस दिन वो मीडिया के साथ उस लड़की के कॉलेज पहुँचा और वहाँ के स्टूडेंट्स की परीक्षाओं में होती लेट-लातीफ़ी के लिए डीन से लिखित में सवाल-जवाब कर रहा था। वहाँ हो रही अव्यवस्था की जानकारी उसे अपने मित्र से प्राप्त हुई थी। ये बात आई-गई हो गयी और उस दिन के कई सालों बाद भी उन दोनों के बीच कोई बात नहीं हुई। कुछ साल बीतने के बाद फ़ेसबुक अस्तित्त्व में आ गया। और किसी पुरानी जान-पहचान की ख़ातिर बस वहीं टकरा गए। वहाँ शुरू हुआ शेरो-शायरी पोस्ट करने का दौर और फिर लाइक-कमेन्ट का सिलसिला। एक बार जब जान-पहचान बढ़ने लगती है तो फिर लगता है कि क्यूँ न थोड़ा और-थोड़ा और जान लिया जाए। ऐसे ही एक दिन पता चला दोनों का चाय से बेहद लगाव है सो ऐसे ही दोनों ने कह दिया कि ठीक है, मिलते हैं चाय पर। लेकिन वो चाय है कि मुमकिन ही नहीं हो पा रही थी। उनकी मुलाक़ात हर बार ऐसे टल जाती जैसे भारत-पाक की शान्ति वार्ता। कभी वो सफ़र पर होता तो कभी वो। लेकिन एक दिन जब वो दोनों ही शहर में थे तब फ़ोन पर बात करके कॉफ़ी हाउस में मुलाक़ात तय हुई। यक़ीन मानिए कि माहौल तो एकदम भारत-पाक शान्ति वार्ता जैसा ही था।

क्रमशः

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